|| *ॐ* ||
" *सुभाषितरसास्वादः* "
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" *वैयाकरण--प्रशंसा* " ( ५० )
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*श्लोक*----
" यद्यापि बहु नाधीषे तथापि पठ पुत्र व्याकरणम् ।
स्वजनः श्वजनो मा भूत् सकलं शकलं सकृत् शकृत् "।।
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*अर्थ*---
एक व्याकरण का पंडित , एक पिता अपने पुत्र को व्याकरण का महत्व बता रहा है -- हे पुत्र! तुम ज्यादा नही पढ़े तो भी चलेगा । किन्तु व्याकरण अवश्य पढ । क्यों कि जिस व्यक्ति को व्याकरण ज्ञान नही होगा वह कैसे अर्थ का अनर्थ करता है ये देखो ।
संस्कृत शब्द ' स्वजन' ( अपना मनुष्य ) इस शब्द को अगर गलतीसे
' श्वजन ' ऐसा लिखा तो उसका अर्थ होता है कुत्ता । वैसे ही ' सकल ' शब्द भी जिसको व्याकरण का ज्ञान नही उसने ' शकल ' ऐसा लिखा तो उसका अर्थ होता है ' टुकडा ' और ' सकृत '( एक बार ) की जगह
' शकृत ' लिख दिया तो उसका अर्थ होगा ' गोबर ' ( शेण ) ।
यह अनर्थ टालने के लिए व्याकरण अवश्य पढना चाहिए ।
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*गूढ़ार्थ*-----
स्व और श्व के फरकसे स और श के भेद से और सकृत और शकृत में तो दरीसादृश्य अंतर है । ऐसी गलती लिखने में और बोलने में की तो क्या होगा ? आप ही सोचकर देखिए ।
इसलिए किसी भी भाषा पर प्रभुत्व के लिए उस भाषा का व्याकरण अच्छे से आना बहुत जरूरी है । यही सुभाषितकार ने हमे समझाया है ।
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / महाराष्ट्र
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