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" *सुभाषितरसास्वादः* "
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" *दैवाख्यानम्* " ( भाग्याविषयी ) ( ४९ )
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" पिता रत्नाकरो यस्य लक्ष्मीर्यस्य सहोदरी ।
शंखो रोदिति भिक्षार्थी फलं भाग्यानुसारतः " ।। ( वृद्धचाणक्यशतकम् )
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*अर्थ*----
शंख का पिता रत्नों की खाण समुद्र और लक्ष्मी जो धन की देवी है।
वह उसकी बहन । किन्तु शंख के नसीब में भिक्षा मांगना लिखा है ।
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*गूढार्थ*----
समुद्रमंथन से लक्ष्मी और शंख दोनो का जन्म हुआ है । किन्तु शंख का भाग्य देखिए उसे घर --घर जाकर भिक्षा मांगनी पडती है । पुराने काल में भिक्षुक शंख बजाकर भिक्षा मांगते थे ।
बहन धन की देवी होने के बाद भी भाई भिक्षुकों के साथ घर--घर हिंडता है । अपना--अपना भाग्य और क्या ?
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / महाराष्ट्र
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