|| *ॐ*||
|| *सुभाषितरसास्वादः*||
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|| *कृतघ्ननिंदा* || (३४)
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*श्लोक*----
" ब्रह्मघ्ने च सुरापे च चोरे भग्नव्रते तथा ।
निष्कृतिर्विहिता लोके कृतघ्ने नास्ति निष्कृतिः "।। ( *पञ्चतन्त्रम्* )
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*अर्थ*-----
अगर ब्रह्महत्या हुई है तो उसको प्रायश्चित है । मद्यपान या चोरी भी की है या व्रतभंग भी हुआ है तो उसको भी प्रायश्चित या उपाय होंते है । पर कृतघ्नता अक्षम्य अपराध है ।
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*गूढार्थ*----
सब गलत बातों के लिए प्रायश्चित या उपाय है लेकीन कृतघ्नता के लिए नही । कृतघ्नता अक्षम्य तथा महत्पाप है ।
जैसे इतरत्र किये हुए पाप तीर्थों में धुल जाते किन्तु तिर्थक्षेत्र में किया हुआ पाप वज्रलेप होकर पिछा करता है ।
वैसे ही कृतघ्नता का है । कृतघ्न व्यक्ति कभी सुख नही पा सकता ।
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*卐卐ॐॐ卐卐*
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / महाराष्ट्र
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|| *सुभाषितरसास्वादः*||
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|| *कृतघ्ननिंदा* || (३४)
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*श्लोक*----
" ब्रह्मघ्ने च सुरापे च चोरे भग्नव्रते तथा ।
निष्कृतिर्विहिता लोके कृतघ्ने नास्ति निष्कृतिः "।। ( *पञ्चतन्त्रम्* )
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*अर्थ*-----
अगर ब्रह्महत्या हुई है तो उसको प्रायश्चित है । मद्यपान या चोरी भी की है या व्रतभंग भी हुआ है तो उसको भी प्रायश्चित या उपाय होंते है । पर कृतघ्नता अक्षम्य अपराध है ।
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*गूढार्थ*----
सब गलत बातों के लिए प्रायश्चित या उपाय है लेकीन कृतघ्नता के लिए नही । कृतघ्नता अक्षम्य तथा महत्पाप है ।
जैसे इतरत्र किये हुए पाप तीर्थों में धुल जाते किन्तु तिर्थक्षेत्र में किया हुआ पाप वज्रलेप होकर पिछा करता है ।
वैसे ही कृतघ्नता का है । कृतघ्न व्यक्ति कभी सुख नही पा सकता ।
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*卐卐ॐॐ卐卐*
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / महाराष्ट्र
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