Wednesday, November 20, 2019

What are the expectations in a marriage ? - Sanskrit sloka - kanyaa varayati rupam

||ॐ||
" सुभाषित  रसास्वाद"(२५)
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" सामान्यनीतिः "।
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श्लोक---
" कन्या  वरयते  रूपं  माता  वित्तं  पिता  श्रुतम् ।
बान्धवाः  कुलमिच्छन्ति  मिष्टान्नामितरे  जनाः "।। ( नैषधीयचरितम्-- श्रीहर्ष)
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अर्थ---
विवाहसम्बन्ध  निश्चित  करते  समय--- कन्या  वर  का  रूप  देखती  है।
माता  उसकी  आर्थिक  परिस्थिती  की  तरफ  ध्यान  देती  है।
पिता  उसके  वंश  की  कीर्ति  है  क्या  यह  सोचता  है ।  
रिश्तेदार  उसके  कुल  की  श्रेष्ठता  देखते  है ।
और  बाकी  सब  लोग  मिष्टान्न  का  ही  विचार  करते  है  और  कहते  है  भोजन  अच्छा  था  तो  " विवाह  अच्छा  हुआ"।
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गूढार्थ---
सुभाषितकार  ने  कितना  सही  कहा  है । आजकल  काॅन्ट्राॅक्ट  पद्धति  में  विवाह  में  शामिल  होने वाले  लोग केवल और  केवल  गेट टू  गेदर  है  ऐसा  मानकर  ही  आते  है । बहुत  दिनों  के  बाद  मुलाकात  हो  गयी  है  तो  गप्पें  मारते  है । यह  हो गयी  रिश्तेदारों  की  बात ।
जो  बाहर वाले  लोग  आते  है  वह  विवाह  होने  के  बाद  तुरंत  भोजन  गृह  जाकर  खाने  लायक  क्या  है  यह  देखते  है ।  और  उसपर  चर्चा  करते  है  कि  फलां  विवाह  में  यह  डिश  कितनी  अच्छी  थी वगैरे  वगैरे ।
और तुरंत  निकल  भी  जाते  है।
यही  आजकल  विवाह  की  विडंबना  हो  गयी  है।
काश  कोई  विवाह  का  सच्चा  अर्थ  समझ  पाता........
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डाॅ.  वर्षा  प्रकाश  टोणगांवकर
पुणे /   महाराष्ट्र 

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