Tuesday, June 18, 2019

Kavya darshan

 || *ॐ*||
  " *संस्कृत-गङ्गा* " ( ८९ )
" *अलंकारशास्त्र या साहित्यशास्त्र* "(१)
अलंकार शब्द का मुख्य अर्थ है भूषण या आभरण ( अलंकारस्तु आभरणम्) कवि संप्रदाय में " *काव्यशोभाकरो धर्मः*" या  "शब्दार्थभूषणम्  अनुप्रसोपमादि" इस अर्थ में अलंकार शब्द का प्रयोग रूढ हुआ है। 
वामन ने अपने काव्यालंकारसूत्र में अलंकार शब्द के दो अर्थ बताये है(१) सौन्दर्यम् अलंकारः और (२) अलंक्रियते अनेन। अर्थात काव्य में सौन्दर्य- - रमणीयता जिसके कारण उत्पन्न होते है अथवा काव्यगत शब्द  और अर्थ में वैचित्र्य जिसके कारण कारण उत्पन्न होता है अथवा काव्यगत शब्द  और अर्थ जिसके कारण सुशोभित होते है उसे अलंकार कहना चाहिए। रुद्रदामन् के शिलालेख के अनुसार द्वितीय शताब्दी ई.स. में साहित्यिक गद्य और पद्य को अलंकृत करना आवश्यक माना जाता था। वात्स्यायन के कामशास्त्र में ६४ कलाओं में " *क्रियाकल्प*" नामक कला का निर्देश हुआ है जो अलंकार शास्त्र के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है।
क्रमशः आगे.......
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर 
पुणे / महाराष्ट्र
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 || *ॐ*||
      " *संस्कृत-गङ्गा* " ( ९० )
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" *अलंकारशास्त्र* "(२)
भरतमुनि के नाट्यशास्त्र में नाट्य में प्रयुक्त ३६ लक्षणों का निर्देश हुआ है। इनमें से कुछ लक्षणों को दण्डी आदि प्राचीन आलंकारिकों ने अलंकार के रूप में स्वीकृत किया है। " *भूषण*"( अथवा विभूषण) नामक प्रथम लक्षण में काव्य के अलंकारो और गुणों का समावेश हुआ है। भरत नाट्यशास्त्र में उपमा, रूपक, दीपक और यमक ये चार नाटक के अलंकार माने गये है। अलंकारशास्त्र के विशेषज्ञों को " *आलंकारिक*" कहा करते थे। प्राचीन काल में अलंकारशास्त्र के अन्तर्गत केवल काव्यगत शब्दालंकारों और अर्थालंकारों का ही नही अपि तु उनके साथ काव्य के गुण ,रीति,रस और दोषों का भी विवेचन होता था। प्रस्तुत शास्त्र के इतिहास में यह दिखाई देता है कि ई. ९ वी शती से अलंकारशास्त्र का निर्देश "साहित्य शास्त्र " के नाम से होने लगा। 
शब्द और अर्थ का परस्पर अनुरूप सौन्दर्यशालित्व यही "साहित्य " शब्द का पारिभाषिक अर्थ माना जाता है।
क्रमशः आगे......
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर 
पुणे / महाराष्ट्र
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