Friday, February 15, 2019

Lessons from a crane -Sanskrit

Courtesy: http://shishusanskritam.com/%E0%A4%AC%E0%A4%97%E0%A5%81%E0%A4%B2%E0%A5%87-%E0%A4%B8%E0%A5%87-%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE-%E0%A4%B8%E0%A5%80%E0%A4%96%E0%A5%87%E0%A4%82/

बगुले की शिक्षा

"इन्द्रियाणि च संयम्य बकवत् पण्डितो नरः ।
देशकालबलं ज्ञात्वा सर्वकार्याणि साधयेत् ।।"
(चाणक्य-नीतिः–०६.१६)

अर्थः—बुद्धिमान् मनुष्य को चाहिए कि अपनी इन्द्रियों को वश में और चित्त को एकाग्र करके तथा देश, काल और अपने बल को जानकर बगुले के समान अपने सारे कार्यों को सिद्ध करें ।

विश्लेषणः—

बगुले का ध्यान जगत्प्रसिद्ध है । किंवदन्ती है कि श्रीराम ने ध्यानमग्न एक बगुले को देखकर लक्ष्मण जी से कहा–

"पश्य लक्ष्मण पम्पायां बकः परमधार्मिकः ।
मन्दं मन्दं पदं धत्ते जीवानां वधशंकया ।।"

हे लक्ष्मण ! पम्पा सरोवर पर इस परमधार्मिक बगुले को देखो, जीवों की हिंसा न हो, अतः कैसे धीरे-धीरे अपने पैरों को रख रहा है ।

लक्ष्मण कुछ उत्तर देते, उससे पूर्व ही एक मछली बोल उठी—

"अहो बकः प्रशंसते राम येनाहं निष्कुली कृता ।
सहवासी विजानीयात् चरित्रं सहवासिनाम् ।।"

अहो ! हे राम ! आप बगुले की प्रशंसा कर रहे हैं, जिसने मुझे कुलहीन बना डाला । सहवासियों के चरित्र को तो सहवासी ही जान सकता है ।

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