|| *ॐ* ||
" *सुभाषितरसास्वादः* "
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" *सप्तर्षिमाहत्म्य* " ( २९५ )
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*श्लोक*----
" मरीचिः अंगिराः अत्रिः पुलस्त्यः , पुलहः क्रतुः ।
वसिष्ठश्च इति सप्तएते सन्ति चित्र शिखण्डिनः ।। "
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*अर्थ*-----
मरीच , अंगिरा , अत्री , पुलस्त्य , पुलह , क्रतु और वसिष्ठ यह सात चित्रशिखण्डी ( सप्तर्षी ) है ।
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*गूढ़ार्थ*---
सप्तर्षी उनके कार्य के कारण प्रसिद्ध हुए है । और उनको आकाश में स्थान मिला है । उनकी कीर्ति यावद्चन्द्रदिवाकर रहनेवाली ही है ।
किन्तु इन सप्तर्षी के साथ एक तारा अरूंधति का भी है । जिसे उसके बुद्धिमत्ता के साथ ही उत्तम पत्नीव्रता के कारण सप्तर्षी में स्थान मिला है । आज भी नवपरिणित दाम्पत्य को कुलपुरोहित अरूंधति दर्शन करने के बाद ही गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने को कहते है । ऐसी यह सप्तर्षी के साथ चमकनेवाली अरूंधति हमारा कल्याण करे ।
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / नागपुर महाराष्ट्र
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