लशुनं गृञ्जनं चैव पलाण्डुं कवकानि च।अभक्ष्याणि द्विजातीनामेध्यप्रभवाणि च।।(मनु०५/५)
लहसुन,गृञ्जन*,प्याज,कवक(छत्राक,भूकन्दविशेष)तथा अपवित्रस्थान में उत्पन्न पदार्थ द्विजातियों के लिये अभक्ष्य हैं।
गृञ्जन-रक्त लशुन।श्रीकुल्लूकभट इसे स्थूलकन्दशाक कहते हैं।हिन्दीअनुवादक इसका अर्थ सलगम या सलजम या लालमूली या गाजर करते हैं।अमरकोश'लशुनंगृञ्जनारिष्टमहाकन्दरसोनकाः'(२/४/१४८)केअनुसार यह लशुन का एक प्रकार है।सुश्रुतानुसार यह पलाण्डु(प्याज)की एक जाति है।भाषाशास्त्र की दृष्टि से गृञ्जन का तद्भव गाजर नहीं हो सकता है।गाजर के लिए संस्कृत में गर्जरशब्द है।अस्तु इसे लशुन या पलाण्डु का एक भेद मानना उचित है।पुनरपि जो इसका अर्थ गाजर मानते है, वेअपनी आस्था पर सुदृढ रहें।मनु०५/१९-२० केअनुसार लशुन,प्याज तथा गृञ्जन काभक्षक द्विज पतित होता है।उसे कृच्छ्र सान्तपन(११/२१२) या यतिचान्द्रायण (११/२१८)करना चाहिए।
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