*कृष्ण त्वं पठ किं पठामि ननु रे शास्त्रं किमु ज्ञायते*
*तत्वं कस्य विभो: स कस्त्रिभुवनाधीशश्च तेनापि किम्।*
*ज्ञानं भक्तिरथो विरक्तिरनया किं मुक्तिरेवास्तु ते*
*दध्यादीनि भजामि मातुरुदितं वाक्यं हरेः पातु न:।।*
—'कृष्ण ! तू पढ़ा कर'। कृष्ण ने पूछा 'क्या पढ़ा करूँ ?' माता बोली, 'शास्त्र'। इस पर कृष्ण ने पूछा 'उससे क्या होगा ?' बोली– 'तत्वज्ञान'। पूछा 'किस तत्व का ज्ञान ?' 'व्यापक ब्रह्म के तत्व का'। कृष्ण ने पूछा 'वह व्यापक ब्रह्म कौन है ? माता ने कहा 'वह त्रिभुवनपति है'। पूछा– 'उसके जानने से क्या होगा?' 'उससे ज्ञान, भक्ति और वैराग्य प्राप्त होंगे'। 'इनसे क्या लाभ होगा ?' 'तेरी मुक्ति हो जाएगी'। इस पर श्रीकृष्ण ने कहा 'मुझे उसकी इच्छा नहीं है, मुझे तो दही (माखन) आदि ही चाहिये'। इस प्रकार यशोदा को उत्तर देनेवाले कृष्ण आपका रक्षण करें।
(साभार krishnakosh.org)
No comments:
Post a Comment