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" *सुभाषितरसास्वादः* "
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" *व्यवहारनीति* " ( २६९)
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*श्लोक*-----
" विद्यार्थी सेवकः पान्थः क्षुधार्तो भयकातरः ।
भाण्डारी च प्रतिहारीच सप्त सुप्तान् प्रबोधयेत् ।।
अहिं नृपंच शार्दुलं वरटिं बालकं तथा ।
परश्वानंच मूर्खंच सप्त सुप्तान् न बोधयेत् "।।
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*अर्थ*-----
विद्यार्थी, नोकर , वाटसरू , भूखा, नींद में घबराया हुआ ,भाण्डारी और राजा का निजिसेवक यह सात अगर सोये हुए है तो उन्हे जगाने को कोई समस्या नही ।
किन्तु इसके विपरीत सांप , राजा , बाघ , विषैले प्राणी , छोटा बच्चा ,दुसरे का कुत्ता और मूर्ख व्यक्ति अगर सोये होंगे तो उन्हे सोने ही देना चाहिए ।
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*गूढ़ार्थ*-------
प्रथम चरण में सुभाषितकार ने यह सात लोग अगर सोये है तो उन्हे जगाना चाहिए ऐसा कहा है क्यों कि उनके काम के हिसाबसे उनको जगाना हितकारक होता है । उनको जगाना उपकारक और अनुकूल होता है ।
किन्तु दुसरे चरण में जो सात लोग कहे गये है उन्हे जगाना मतलब " अव्यापारेषु व्यापार " हो जायेगा । इन्हे असमय जगाना जगानेवाले को त्रासदायक और नुकासानदायक हो सकता है । और इन्हे जगाना मतलब अपकारक इसलिए सुभाषितकार ने इन्हे वैसे सोने देने का सल्ला हमे दिया है जो अत्यंत मननीय है ।
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / नागपुर महाराष्ट्र
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