|| *ॐ* ||
" *सुभाषितरसास्वादः* "
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" *प्रहेलिकाः* " ( २८० )
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*श्लोक*---
साक्षरं रञ्जकं ज्ञानि , प्रातः सर्वैः प्रतीक्ष्यते ।
अन्येद्युर्विपरीतं च , कोणे क्षिप्तमनादरात् ।। "
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*अर्थ*----
मैं साक्षर हूँ , रञ्जक भी हूँ , ज्ञानी भी हूँ । और प्रातःकाल लोग सब मेरी प्रतीक्षा करते है । किन्तु दूसरे दिन सब विपरीत होता है यह लोग मुझे अनादर से कोणे में फेंक देते है ।
तो मैं कौन हूँ ?
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*गूढ़ार्थ*---
वार्तापत्रम्
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / नागपुर महाराष्ट्र
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