|| *ॐ* ||
" *सुभाषितरसास्वादः* "
" *प्रहेलिकाः* " ( २७३ )
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*श्लोक*---
" शतशतहस्तः शतशतपादः , तृणमिववर्णश्चरणप्राशः ।
अशनं , वसनं , छाया , वित्तम् , सकलं सकलं मत्तः प्राप्तम् ।।
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*अर्थ*----
मुझे सौ सौ हाथ है और सौ सौ पैर है । घास के जैसा मेरा वर्ण है और घास मेरे चरणों में रहती है । भोजन , वस्त्र, छाया और धन आप लोगों को मुझसे ही प्राप्त होता है ।
तो मैं कौन हूँ ?
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*गूढ़ार्थ* -----
ब्रूहि त्वं ब्राह्मी 🙂
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / नागपुर महाराष्ट्र
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