Friday, December 14, 2018

A book speaks thus - Sanskrit subhashitam

|| ॐ ||
      " सुभाषितरसास्वादः " 
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    " तत्त्वज्ञाननीति ( २७० )
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    श्लोक----
   " तैलाद्रक्षेत्  जलाद्रक्षेत्  रक्षेत  शिथिल  बंधनात्  ।
     मूर्खहस्ते  न  दातव्यं  एवं  वदति  पुस्तकम्  " ।।
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  अर्थ----
    पुस्तक  कहता  है--- मेरा  तेल  से  रक्षण  करो , मेरा  पानी  से  रक्षण  करो , मेरे  पन्ने  शिथिल  मत  होने  देना और  मुझे  कभी  भी  मुर्खों  के  हाथ  में  नही  देना ।
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    गूढ़ार्थ------
   ग्रन्थ  अनमोल  होते  है ।  खास  करके  पुराने  ग्रन्थ  जो  आजकल  दुर्मिळ  हो  गये  है  जिसका  पुनर्मुद्रण  नही  होता । ऐसे  ग्रन्थों का  संरक्षण  अत्यंत  आवश्यक  है ।  संदर्भों  के  लिए  पुस्तके  अत्यावश्यक  है ।  मनुष्यों  को  जैसी  स्मरणशक्ति  वैसी  ही  मनुष्यजातीको  पुस्तके ।
ग्रन्थ  मनुष्यों  के  मित्र  है ।
  किन्तु  लोग पुस्तकों  की पर्वा  नही  करते  उसके  पन्ने  पलटते  समय  उंगलियों  को थूक  लगाकर  शीघ्र  शीघ्र  पन्ने  पलटते  है ।
  पुस्तकों  पर  तरह  तरह  से  अन्याय  होते  रहते  है ।
सुभाषितकार  पुस्तक  की  तक्रार  क्या  होगी  इस  पर  भाष्य  करते  है  मेरा  तेल  और  पानी  से रक्षण  करो और  पन्ने  की  बंधाई  शिथिल  मत  होने  देना  इत्यादि  किन्तु  चौथा  महत्वपूर्ण  मुद्दा  यह  है  कि मुझे  मूर्खों  के  हाथों  में  कभी  भी  मत  दीजीए   क्यों  कि उन्हे  मेरी  किंमत  नही  रहती ।
जब  अच्छे  और  दुर्मिळ  ग्रन्थ  जो  हमारे  पूर्वजों  ने  जतन  किये  है  वह  जब  फुटपाथ  पर  रद्दी  के  भाव  से  बिके  जाते  है  तब  जो  वेदना  ह्रदय  में  उठती  है  वह  पुस्तकप्रेमी  ही  जान  सकता  है ।
श्री. समर्थ  रामदास स्वामी  ने  भी  कहा  ही  है---
" पुस्तकाची  निगा  न  राखतो  तो  एक  मूर्ख "।
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डाॅ. वर्षा  प्रकाश  टोणगांवकर 
पुणे  / नागपुर  महाराष्ट्र 
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