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" *सुभाषितरसास्वादः* "
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" *वृत्तिनीति* " ( २१० )
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*श्लोक*----
" संतप्तायसि संस्थितस्य पयसः नाम अपि न श्रुयते ।
मुक्ताकारतया तद् एव नलिनीपत्रस्थितं दृश्यते ।।
अन्तःसागरशुक्ति कुक्षि--पतितं तद् मौक्तिकं जायते ।
प्रायेण अधम-मध्यम-उत्तमजुषाम् एवंविधाः वृत्तयः ।। "
( भर्तृहरि नीतिशतक )
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*अर्थ*---
बहुत गरम तवे पर अगर पानी का बूँद गिर गया तो वह भांप बनकर उड जाता है , उसका नामो-निशान मिट जाता है। वही पानी का बूँद कमल के पत्ते पर गिर गया तो मोती जैसा दिखता है । और वही पानी की बूँद अगर समुद्र के सिप में गिर गयी तो उससे मोती निर्माण होता है । नीच , मध्यम , उत्तम सहवास की यह बहुशः अवस्था है ।
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*गूढ़ार्थ*----
पानी की बूँद की तरह ही मनुष्य के सहवास में आनेवाले व्यक्ति की अवस्था होती है । नीच व्यक्ति तवे पर गिरे पानी के बूंद की तरह होता है , जिसके साथ रहेगा उसे भी नष्ट कर देगा । मध्यम व्यक्ति कमल पर गिरे बूँद के समान मोती की तरह चमकता तो है पर जैसे पत्ते पर गिरा बूँद हाथ लगाने के बाद नष्ट हो जाता है वैसे ही मध्यम व्यक्ति संकट आने पर भाग खडा होता है । उत्तम व्यक्ति सिप की मोती की तरह होता है जो हमेशा खरा ही उतरता है ।
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / नागपुर महाराष्ट्र
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