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"सुभाषित रसास्वाद"(२०७ )
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" विद्याप्रशंसा"
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श्लोक--
"विद्या शस्त्रं च शास्त्रं च द्वे विद्ये प्रतिपत्तये।
आद्या हास्याय वृद्धत्वे द्वितीयाद्रियते सदा"।।(हितोपदेशः नारायण पंडित)
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अर्थ-- शस्त्र और शास्त्र दोनों ही विद्या है । और दोनो ही ज्ञान तथा सन्मान देती है। यह सच है किन्तु दोनो में भेद ऐसा है कि वृद्धावस्था में शस्त्रविद्या लोगों के उपहास का और टीका का पात्र बनती है किन्तु शास्त्र विद्या(ज्ञान) की प्रतिष्ठा वृद्धावस्था के कारण अधिकाधिक वृद्धिंगत होती है।
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गूढ़ार्थ--" कोई भी विद्या सिखने का एक निश्चित समय होता है और उसके अभ्यास का भी वृद्धावस्था में अपने से वज़नदार शस्त्र उठोओगे तो लोग उपहास करेंगे ही किन्तु शास्त्र रूपी ज्ञान विद्या आपको वृद्धावस्था में ज्यादा प्रसिद्धि देगी उसकी आभा आपको गौरवान्वित करेगी।"
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे/ नागपुर महाराष्ट्र
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