|| *ॐ* ||
" *सुभाषितरसास्वादः* "
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" *कवयःप्रशंसा*" ( २०२ )
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*श्लोक*----
" कवीश्वराणां वचसां निनादै --
र्नदन्ति विद्यानिधयो न चान्ये ।
चन्द्रोपला एव करैर्हिमांशो--
र्मध्ये शिलानां सरसा भवन्ति ।। "
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*अर्थ*----
महान कवियों के वाणी के पडसाद , सुविद्य अंतःकरण में ही उठते है ; इतर लोगों के नही । पत्थरों की राशी में अकेला चन्द्रकान्त मणि ही चन्द्र का किरण उसपर पडने के बाद चमक उठता है ।
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*गूढ़ार्थ*----
कवी को सुविद्य और रसिक श्रोता प्राप्त होना बडा ही सौभाग्यकारक होता है । खचाखच भरे प्रेक्षागृह में एखाद ही श्रोता सुविद्य होता है ; जो कवी की वाणी सुनने के बाद या उसकी कविता पढने के बाद द्रवीभूत हो उठता है और वही अन्तः करण से कविता की प्रशंसा करता है । बाकी सब तो पत्थरों की राशी के समान होते है। जिनको कवीरूपी चन्द्रकिरणों से कोई फरक नही पडता ।
चन्द्रमणि तो एकाध ही रहता है ।
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डाॅ . वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / नागपुर महाराष्ट्र
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