|| *ॐ* ||
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" *सुभाषितरसास्वादः* "
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" *संतमहिमा* ( १८३ )
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*श्लोक*----
" गङ्गा पापं , शशी तापं , दैन्यं कल्पतरुस्तथा ।
पापं तापं च दैन्यं घ्रन्ति सन्तो महाशयाः ।। "
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*अर्थ*----
गङ्गा पाप , चन्द्र ताप और कल्पतरु दैन्य हरण करते है ।
किन्तु सन्त यह तीनों भी नष्ट करते है ।
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*गूढ़ार्थ*-----
गङ्गा स्नान करने से पाप हरण होता है । चन्द्र के शीतल किरणों से शरीर का ताप नष्ट होता है और कल्पतरु के सानिध्य में दैन्य ( शारिरीक और मानसिक और आर्थिक भी ) नष्ट होता है । लेकीन एक संत का सहवास ही हमे यह तीनों चीजें देता है । संतसंगती का महिमा सचमुच अगाध है जो वाणी से वर्णन नही कर सकते ।
संत ज्ञानेश्वर, संत तुकाराम , समर्थ रामदास स्वामी , रामकृष्ण परमहंस आदि संतो ने अपने शिष्यों का जीवन श्रेष्ठतम बना दिया था ।
ऐसे संतों को ह्रदय से ---👏👏👏👏👏
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डाॅ . वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / नागपुर महाराष्ट्र
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