Thursday, September 13, 2018

Sanskrit subhashitam

|| *ॐ* ||
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   " *सुभाषितरसास्वादः* "
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   " *संतमहिमा* ( १८३ )
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   *श्लोक*----
     " गङ्गा पापं , शशी  तापं ,  दैन्यं  कल्पतरुस्तथा ।
       पापं तापं च  दैन्यं  घ्रन्ति  सन्तो  महाशयाः ।। "
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   *अर्थ*----
   गङ्गा  पाप , चन्द्र  ताप  और  कल्पतरु  दैन्य  हरण  करते  है ।
   किन्तु  सन्त  यह  तीनों  भी  नष्ट  करते  है ।
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*गूढ़ार्थ*-----
   गङ्गा  स्नान  करने से  पाप हरण  होता है ।  चन्द्र  के  शीतल  किरणों  से  शरीर  का  ताप  नष्ट  होता  है  और  कल्पतरु  के  सानिध्य  में  दैन्य  ( शारिरीक  और  मानसिक और आर्थिक भी ) नष्ट  होता  है । लेकीन  एक  संत  का  सहवास  ही  हमे  यह  तीनों  चीजें  देता  है । संतसंगती  का  महिमा  सचमुच  अगाध  है  जो  वाणी  से  वर्णन  नही  कर  सकते ।
   संत ज्ञानेश्वर,  संत तुकाराम , समर्थ  रामदास स्वामी , रामकृष्ण परमहंस आदि  संतो ने   अपने  शिष्यों  का  जीवन  श्रेष्ठतम  बना  दिया  था ।
  ऐसे  संतों  को  ह्रदय  से ---👏👏👏👏👏
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डाॅ . वर्षा  प्रकाश  टोणगांवकर 
पुणे  / नागपुर  महाराष्ट्र 
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