कमठ की पीठि जाके गोडनि की गाड़ैं मानो, नाप के भाजन भरि जल निधि जल भो। जातुधान-दावन परावन को दुर्ग भयो, महामीन बास तिमि तोमनि को थल भो।। कुम्भकरन-रावन पयोद-नाद-ईंधन को, तुलसी प्रताप जाको प्रबल अनल भो। भीषम कहत मेरे अनुमान हनुमान, सारिखो त्रिकाल न त्रिलोक महाबल भो।। भावार्थ – कच्छप की पीठ में जिनके पाँव के गड़हे समुद्र का जल भरने के लिये मानो नाप के पात्र (बर्तन) हुए। राक्षसों का नाश करते समय वह (समुद्र) ही उनके भागकर छिपने का गढ़ हुआ तथा वही बहुत-से बड़े-बड़े मत्स्यों के रहने का स्थान हुआ। तुलसीदासजी कहते हैं – रावण, कुम्भकर्ण और मेघनाद रुपी ईंधन को जलाने के निमित्त जिनका प्रताप प्रचण्ड अग्नि हुआ। भीष्मपितामह कहते हैं – मेरी समझ में हनुमान् जी के समान अत्यन्त बलवान् तीनों काल और तीनों लोक में कोई नहीं हुआ।।
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