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" सुभाषितरसास्वादः "
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" अर्थचमत्कृति " ( १३२ )
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श्लोक----
" स्वयं स्थाणुरपर्णा स्त्री विशाखस्तनयः स्मृतः ।
तथापि कुरुते छायां भवतापापहारिणीम् " ।।
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अर्थ-----
शंकर स्वयं स्थाणु , पत्नी अपर्णा , मुलगा विशाख । किन्तु यह स्थाणु छाया ऐसी देते है कि भवताप शांत हो जाता है ।
बाकी वृक्ष जिनको बहुत सारी शाखायें होती है वह भी छाया देते है वह देहताप शांत करते है किन्तु भवताप केवल स्थाणु ही शांत करता है ।
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गूढ़ार्थ---
स्थाणु=(१) शंकर का एक नाम ;( २)पेड का बुंधा । ( जिसको पत्ते और शाखा नही रहती ) अपर्णा = (१)पार्वती का एक नाम ; (२) पर्णहीन।
विशाख =(१) कार्तिक स्वामी ;(२) शाखा जिसको नही होती ।
शंकर स्वयं स्थाणु ( केवल बुंधा ) पत्नी पर्णहीन लड़का विशाख जिसको शाखायें नही है । तो भी यह स्थाणु की छाया भवताप हरण करती है । बहुत सारे शाखा वाले और हरे-भरे पर्णवाले वृक्ष केवल देहताप शांत करते है ।
भगवान शिव की महिमा अगाध है ।
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / नागपुर महाराष्ट्र
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