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" *वन्देसंस्कृतमातरम्* "
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" *लौकिकन्यायकोशः* " ( ६७ )
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" *दुर्जनगर्दभन्यायः* "
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दुर्जनस्य गर्दभस्य च मध्ये महत् साम्यम् अस्ति । द्वौ अपि उत्तमं पन्थानं मलिनी कुरुतः । द्वौ अपि धनसंचये समर्थौ भूत्वा अपि उन्मत्तौ
भवतः। वैशाखमासे द्वावपि स्वच्छाचारिणौ भवतः । प्रहारान् प्राप्य अपि स्वभावं न त्यजतः। अस्मिन् अर्थे कश्चन श्लोकः विद्यते---
" मलिनीकुर्वन् अर्जुनवर्त्म मन्दीभवति राधेयः ।
यदि ताडनादि लभते तथापि तच्छील एव खलः "।।
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / नागपुर महाराष्ट्र
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