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" *वन्देसंस्कृतमातरम्* "
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" *लौकिकन्यायकोशः* " ( ५० )
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" *जपास्फटिकन्यायः* "
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स्फटिकस्य समीप यादृशं पदार्थ स्थापयामः स्फटिकस्य स एव वर्ण इव भाति । जपापुष्पस्य स्थापनेन स्फटिकस्य तद्वर्णप्रतिफलं भवति ।
एवं स्वभावम् अपरिवर्त्य औपाधिकरूपेण अन्येषां गुणधर्मप्रतिबिम्बनं किञ्चित्कालं यावत् करोतित्यर्थे अस्य प्रयोगो भवति ।
आत्मा तावत् कर्ता भोक्ता नास्तीति उपनिषदां मतम् । तथापि आत्मनि कर्तृत्वादिबुद्धिः जपास्फटिकन्यायमेव अनुसरति ।
*यथा*----यथा स्फटिके जपाकुसुमाश्रिते लौहित्यं विवेकिनां प्रतीतित एवास्ति न वस्तुतः इति वक्तुं शक्यम् ।
( मधुसूदनसरस्वतीगीताभाष्ये--- १८-- ९ )
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / नागपुर महाराष्ट्र
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