*ॐ श्रीहनुमते नमः ॥ जयश्रीराम ॥*
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तिनका कबहुँ ना निन्दिये,
जो पाँवन तर होय ।
कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े,
तो पीर घनेरी होय ॥
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अर्थ: कबीर कहते हैं कि एक छोटे से तिनके की भी कभी निंदा न करो जो तुम्हारे पांवों के नीचे दब जाता है। यदि कभी वह तिनका उड़कर आँख में आ गिरे तो कितनी गहरी पीड़ा होती है ॥
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*संस्कृतानुवादः ★★*
*🌷कबीरदासः कथयति यत् एकस्य लघुतृणस्य अपि कदाचित् निन्दां मा कुरु यत् तव पादयोः अधः आगम्यते । यदि कदाचित् तत् उड्डीय नयनयोः पततु तर्हि कियती महती पीडा भवति ।*
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*ॐ॥जयतुसंस्कृतम् ॥ जयतुभारतम्॥ॐ*
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