Thursday, April 26, 2018

Gunas are known by crushing -Sanskrit subhashitam

इक्षुदण्डास्तिलाः क्षुद्राः कान्ता हेम च मेदिनी ।
चन्दनं दधि ताम्बूलं मर्दनं गुणवर्धनम् ।।"
(चाणक्य-नीतिः--9.13)

शब्दार्थः---(इक्षुदम्डाः) ईख, (तिलाः) तिल, (क्षुद्राः) गँवार, (कान्ता) स्त्री, (हेम) सोना, (मेदिनी) भूमि, (चन्दनम्) चन्दन, (दधि) दही, (च) और (ताम्बूलम्) पान---इन सबका (मर्दनम्) मर्दन (रगडना) करना (गुणवर्धनम्) इनके गुणों को बढाने वाला है ।

अर्थः----ईख, तिल, गँवार, स्त्री, स्वर्ण, भूमि, चन्दन, दही और पान---इन सबका जितना मर्दन किया जाए, उतना ही इनके गुण बढते हैं ।

विमर्शः--यहाँ "मर्दन" शब्द अनेक अर्थ का वाची हैः---
(1.) ईख और तिल पेरने या पेलने अर्थ में हैं ।

(2.) गँवार में ताडने (चोट पहुँचाने, धमकाने) अर्थ में है ।

(3.) स्त्री में कुच-मर्दन के अर्थ में है ।

(4.) सोने में कूटने के अर्थ में है ।

(5.) भूमि में जोतने के अर्थ में है ।

(6.) चन्दन में घर्षण करने के अर्थ में है ।

(7.) दही में मन्थन (विलोने) करने के अर्थ में है ।

(8.) पान में चर्वण (चबाने) के अर्थ में है ।

विशेषः---प्रत्येक द्रव्य के साथ जो अर्थ दिया गया है, वह जितना अधिक किया जाए, वह उतना अधिक फल देता है ।

जैसे ईख और तिल को जितनी अधिक बार कोल्हू में पेला जाएगा, उतना ही अधिक रस और तेल निकालेगा ।

क्षुद्रजन--गँवार को जितनी ताडना दी जाएगी, उतनी ही अच्छी प्रकार से वह कार्य करेगा।

मैथुन के समय कुचों (चूचक) का जितना अधिक मर्दन किया जाएगा, उतना ही अधिक आनन्द प्राप्त होगा ।

सोने को जितनी बार पीटा जाएगा, उतना ही उत्तम आभूषण बनेगा ।

भूमि को जितना जोता जाएगा, उतनी ही अधिक उपज होगी ।

किसी ने ठीक ही कहा हैः--

"मेंढ बाँध दस जोतन दे, दस मन बीघा मोसे ले ।
बीज पडे फल अच्छा देत, जितना गहरा जोते खेत ।।"

चन्दन को जितना घिसें उतना ही उसका गुण बढता है ।

 दही को जितना मथें, उतना ही अधिक मक्खन निकलता है ।

पान को जितना चबाएँ, उतना ही गुण बढ जाता है ।

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