Tuesday, March 27, 2018

Numbers & related deities/places/items in Hindu dharma - Sanskrit

कतिपय ज्ञातव्य तथ्य-वैदिकधर्म(हिन्दूधर्म)के-
देवता३३(आदित्य१२, वसु८+रुद्र११+अश्विनीकुमार२)
आदित्य १२- धाता, मैत्र, अर्यमा,त्वष्टा,इन्द्र,भग, वरुण, अंशु, विवस्वान्, पूषा, सविता और विष्णु।
वसु८-आप,ध्रुव, सोम, धर, अनिल, अनल, प्रत्यूष और प्रभास।
रुद्र११- हर,बहुरूप, त्र्यम्बक,अपराजित, वृषाकपि, शम्भु, कपर्दी,
रैवत, मृगव्याध, शर्वऔर कपाली।
अश्विनीकुमार२-नासत्य,दस्र
[विशेष-अथर्ववेद(१०/७/२७),
बृहदारण्यक उपनिषद्(१/४/१२)शांकरभाष्य, वा०रा०३/१४/१४-१५)तथा महाभारत(अनु०१५०/१२-१७)इत्यादि केअनुसार मुख्य देवता ३३ही हैं।उनकी३३००,३३०००
तथा३३कोटि संख्या स्त्रीपुत्रपरिकरसहित ही उक्त है।ग्रन्थभेद से नामों में भेद है।(द्र०-सार्वभौमसनातनसिद्धान्त,पृ०१६१-१७६,प्रणेता-ज०गु०श्रीनिश्चलानन्द सरस्वती)]
 पक्ष२-१कृष्ण पक्ष ,
 २शुक्ल पक्ष ।
 ऋण ३-देव ऋण , 
पितृ ऋण , 
ऋषि ऋण ।
 युग४-
१-सत्ययुग , 
२त्रेतायुग ,
३द्वापरयुग , 
४कलियुग ।
धाम ४-द्वारका , बद्रीनाथ ,
जगन्नाथ पुरी , रामेश्वर
पीठ ४-शारदापीठ (द्वारका )
ज्योतिष्पीठ ( जोशीमठ बद्रीधाम ) ,गोवर्धनपीठ ( जगन्नाथपुरी ) , दक्षिणाम्नाय शारदापीठ(
शृङ्गेरी)
चार वेद-ऋग्वेद , यजुर्वेद , 
सामवेद ,अथर्ववेद।
चार आश्रम -ब्रह्मचर्य , 
गार्हस्थ्य , वानप्रस्थ ,संन्यास  अंतःकरणचतुष्टय-मन , बुद्धि , चित्त , अहंकार।
पञ्च गव्य -गाय का घी , 
दूध , दही ,गोमूत्र , गोबर ।
पञ्च -देवता एवं संप्रदाय -१ब्रह्मा(सूर्य)-उत्पादक-सौरसंप्रदाय,२ विष्णु-पालक-वैष्णवसंप्रदाय ,३शिव-संहारक-शैवसंप्रदाय, ४शक्ति(दुर्गा)-निग्राहक-शाक्तसंप्रदाय ,५गणपति-अनुग्राहक-गाणपतसंप्रदा
पंचतत्त्व -पृथ्वी ,
जल , अग्नि , 
वायु , आकाश ।
षड्दर्शन -
१वैशेषिक ,
२ न्याय , 
३सांख्य ,
४योग , 
५पूर्वमीमांसा ,
६उत्तरमीमांसा(वेदान्त)
वेदाङ्ग६-
१-शिक्षा,
२कल्प,
३व्याकरण,
४निरुक्त,
५छन्द,
६ज्योतिष।
सप्त ऋषि -मरीचि,अत्रि,अंगिरा,पुलस्त्य,पुलह,क्रतु,वसिष्ठ
सप्त पुरी -अयोध्या  ,
मथुरा , माया ( हरिद्वार ) , 
काशी ,कांची 
( शिव कांची - विष्णु कांची ) , 
अवंतिका और द्वारका
 योग के आठ अंग-१यम , 
२नियम ,३ आसन ,४प्राणायाम , ५प्रत्याहार , ६धारणा , ७
ध्यान एवं ८समाधि 
अष्टलक्ष्मी -१आद्यलक्ष्मी , 
२विद्यालक्ष्मी , ३सौभाग्यलक्ष्मी ,
४अमृतलक्ष्मी, ५काम लक्ष्मी, ६सत्यलक्ष्मी ,७ भोगलक्ष्मी ,एवं ८
योगलक्ष्मी ।             
 नव दुर्गा --१शैलपुत्री , २
ब्रह्मचारिणी ,३चंद्रघंटा , ४कूष्मांडा ,५स्कंदमाता , ६कात्यायनी७कालरात्रि , ८महागौरी ९सिद्धिदात्री !
 दस दिशाएं -पूर्व , पश्चिम , 
उत्तर ,दक्षिण ,ऐशान ,नैर्ऋत्य , वायव्य , आग्नेय
आकाश एवं पाताल ।
 मुख्य १०अवतार - मत्स्य , 
कूर्म,वराह ,नरसिंह , 
वामन , परशुराम ,
श्रीराम , कृष्ण , बुद्ध , 
एवं कल्कि ।
द्वादश मास - १चैत्र ,२ वैशाख ,३ज्येष्ठ ,४आषाढ , ५
श्रावण , ६भाद्रपद ,७ आश्विन ,८कार्तिक ,९मार्गशीर्ष ,१०पौष ,११ माघ , १२फाल्गुन ।
द्वादश राशि एवं स्वामी १ मेष-भौम ,२ वृष-शुक्र, ३मिथुन-बुध ,४कर्क-चन्द्र , ५सिंह-रवि ,६ कन्या-बुध , ७तुला-शुक्र,८ वृश्चिक-भौम , ९थनु -गुरु,१० मकर-शनि ,११ कुंभ-शनि ,१२ मीन-गुरु
द्वादशज्योतिर्लिङ्ग- १
सोमनाथ ,२मल्लिकार्जुन ,३महाकाल ,४ओङ्कारेश्वर,५वैद्यनाथ ,६रामेश्वर,७विश्वनाथ ,८त्र्यम्बकेश्वर ,९केदारनाथ ,१०घुष्मेश्वर ,११भीमशंकर ,१२नागेश्वर ।
पंचदश तिथियाँ तथा उनके स्वामी-                १प्रतिपदा-अग्नि ,२द्वितीया-ब्रह्मा,३तृतीया-गौरी,
४चतुर्थी-गणेश ,
५पंचमी -सर्प(नाग),६षष्ठी-स्कन्द ,
७सप्तमी-सूर्य,
८अष्टमी-शिव ,
९नवमी-दुर्गा ,
१०दशमी -यम,११एकादशी-विश्वेदेव ,१२द्वादशी-विष्णु ,
१३ त्रयोदशी -काम,
१४ चतुर्दशी -शिव, 
१५पूर्णिमा /अमावास्या-चन्द्रमा।
विवाह में विहित नक्षत्र-वेधरहित मृगशिरा,हस्त,मूल,अनुराधा,मघा,रोहिणी, रेवती,उत्तराफाल्गुनी,उत्तराभाद्रपद, उत्तराषाढा,स्वाती।(मुहूर्तचिन्तामणि, विवाह५५)
अभिजित् नक्षत्र(९/६/४०-९/१०/५३/२०)-उ०षाढा का१/४(चतुर्थभाग)+श्रवण का१/१५(पन्द्रहवाँभाग)
जन्मनक्षत्र से१,३,५,७वाँ नक्षत्र अशुभफलदायक होता है तथा२,४,६,८,९वाँ शुभफलदायक।
मुख्य स्मृतियाँ-मनु , विष्णु ,अत्रि, हारीत ,
याज्ञवल्क्य ,औशनस
आंगिरस, यम , आपस्तम्ब ,संर्वत ,
कात्यायन , बृहस्पति , 
पराशर , व्यास , शंख,
लिखित , दक्ष , शातातप , 
वसिष्ठ ।
ग्रह , वृक्ष तथा रत्न-
रवि-मदार,माणिक्य
सोम-पलाश,मोती
भौम-खदिर,मूँगा
बुध-अपामार्ग,पन्ना
गुरु-पीपल,पुखराज
शुक्र-गूलर,हीरा
शनि-शमी,नीलम
राहु-दूर्वा,गोमेद
केतु-कुश,वैदूर्य(लहसुनिया)
नक्षत्र तथा वृक्ष-           १अश्विनी-किंपाक(कुचिला)
२भरणी-आँवला,
३कृत्तिका-गूलर,
४रोहिणी-जामुन,
५मृगशिरा-खदिर,
६आर्द्रा-शीशम(कालीपाकड़-नारदपु०५६/२०५)
७पुनर्वसु-बाँस,
८पुष्य-पीपल,
९आश्लेषा-नागकेसर,
१०मघा-वट(बरगद)
११पूर्वाफाल्गुनी-पलाश,
१२उत्तराफाल्गुनी-पाकड़(रुद्राक्ष-ना०५६/२०६)
१३हस्त-रीठा
१४चित्रा-बिल्व,
१५स्वाती-अर्जुन,
१६विशाखा-कटाय,
१७अनुराधा-बकुल,
१८ज्येष्ठा-चीड़,
१९मूल-साल,
२०पूर्वाषाढा-अशोक,
२१उत्तराषाढा-कटहल,
२२श्रवण-मदार,
२३धनिष्ठा-शमी,
२४शतभिषा-कदम्ब,
२५पूर्वाभादपद-आम,
२६उत्तराभाद्रपद-नीम,
२७रेवती-महुआ(स्वनक्षत्र के वृक्ष के रोपणसेचन-संवर्धनपूजनादि से पापग्रहकृत अनिष्ट शान्त होते हैं।)
अष्टादशपुराण-१मत्स्य,२मार्कण्डेय,३भविष्य,४भागवत,५शिव,६विष्णु,७वामन,८वाराह,९ब्रह्म,१०ब्रह्माण्ड,११ब्रह्मवैवर्त,१२अग्नि,१३नारद,१४पद्म,१५लिङ्ग,१६गरुड,१७कूर्म,१८स्कन्दपुराण।(भा०१२/१३।४-९)
'मद्वयं भद्वयं शैवं 
वत्रयं ब्रत्रयं तथा।अनापलिङ्गकूस्कानि पुराणानि पृथक्पृथक्।।'
महाभारत के अष्टादशपर्व-श्लोकसंख्या केसाथ
१आदि-८९८४
,२सभा-२५११,
३वन-११६६४,
४विराट्-२०५०,
५उद्योग-६६२८,
६भीष्म-५८८४,
७द्रोण-९९०९,
८कर्ण-४९६४,
९शल्य-३२२०,
१०सौप्तिक-८७०,
११स्त्री-७७५,
१२शान्ति-१४७३२,
१३अनुशासन-८०८०,
१४अश्वमेध-३३२०,
१५आश्रमवास-१५०६,
१६मौषल-३०० १७महाप्रास्थानिक-३२०तथा १८स्वर्ग-२००।(शब्दकल्पद्रुमतः)
उपर्युक्त विवरण की त्रुटियाँ सूचनीय हैं।-रूपनारायणपाण्डेय

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