Sunday, September 24, 2017

Taitteriyo upanishad, sikshavalli meaning is sanskrit

।।श्रीमते रामानुजाय नमः।।

एष आदेशः, एष उपदेशः 
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"सत्यं वद, धर्मं चर, स्वाध्यायान्मा प्रमदः। कुशलान्न प्रमदितव्यम्। भूत्यै न प्रमदितव्यम्। देवपितृकार्याभ्यां न प्रमदितव्यम्। यान्यनवद्यानि कर्माणितानि सेवितव्यानि, नो इतराणि। यान्यस्माकं सुचारितानि तान्येव त्वयोपास्यानि, नो इतरणि। प्रजातन्तुं मा व्यवच्छेत्सीः। मातृदेवो भव, पितृदेवो भव, आचार्यदेवो भव। ये के चास्मच्छ्रेयांसो ब्राह्मणाः अलूक्षाः समर्शिनः, तेषां त्वयाऽऽसनेन प्रश्वसितव्यम्। अथ यदि ते कर्मविचिकित्सा वा वृत्त चिकित्सा वा स्यात्, ये तत्र ब्राह्मणः धर्मकामाः स्युः, यथा ते तत्र वर्तेरन् तथा तत्र वर्तेशाः। एष आदेशः; एष उपदेशः ; एषा वेदोपनिषत्।"

    –तैत्तिरीय उपनिषद्, शिक्षावल्ली, अनुवाक ११, मंत्र १

वेद के शिक्षण के पश्चात् आचार्य आश्रमस्थ शिष्यों को उपदेश देते हुए कहता है—  सत्य बोलो, धर्म का आचरण करो, स्वाध्याय में आलस्य मत करो।अर्थात धर्म के अनुसार सत्य बोलना, आचरण करना, स्वाध्याय में अर्थात् बुद्धिवर्धक-ज्ञानवर्धक-शास्त्रों के नित्य अवलोकन करने में प्रमाद नहीं करना। पढ़ना समाप्त हुआ, अब हमको पठन-पाठन से क्या काम, ऐसा मत समझना। कुशलता साधने वाले, कौशल के कामों के करने से मत चूकना। भूति, विभूति, विभव सम्पादन करने वाले धर्म युक्त कामों के करने से मत चूकना। देवों और पितरों के ऋण चुकाने वाले कामों से मत चूकना। जो अच्छे काम हैं वही करना। यदि हमने भी कोई अनुचित काम किया है, तो यह विचार के कि, 'आचार्य ने ऐसा किया है' उसका अनुकरण नहीं करना। जो हमसे अच्छे काम बन पड़े हैं, उन्हीं का अनुकरण करना, हमारे अनुचित कामों का अनुकरण मत करना। हमसे जो अधिक श्रेष्ठ सच्चरित्र विद्वान मिलें उनकी उपासना करना। अन्धश्रद्धा मत करना; अपनी बुद्धि पर भरोसा करके विवेक से काम करना। अपने मन में सार्वजनिक स्नेह का भाव रखना। प्रजा, सन्तान का उच्छेद मत करना। अपने सुख, चैन की स्वार्थी लालच से गार्हस्थ्य के उत्तम धर्म का बोझ उठाने से जान मत छिपाना।

           –रमेशप्रसाद शुक्ल

           –जय श्रीमन्नारायण।

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