*प्रियो भवति दानेन प्रियवादेन चापर:।*
*मन्त्रमूलबलेनान्यो य: प्रिय: प्रिय एव स ॥*
संसार में कोई मनुष्य दान देनेसे प्रिय होता है, दूसरा प्रिय वचन बोलनेसे प्रिय होता है और तीसरा, मन्त्र और औषध के बल से प्रिय होता है, किन्तु जो वास्तव में प्रिय है, वह तो सदा प्रिय ही है ।
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