ॐ
।। सुभाषित रसास्वाद।। (३०)
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" सामान्यनीति"
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श्लोक------
" एको देवः केशवो वा शिवो वा एकं मित्रं भूपतिर्वा यतिर्वा ।
एका भार्या सुन्दरी वा दरी वा एको वासः पत्तने वा वने वा "।।
(नीतिशतकम् ( भर्तृहरि) )
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अर्थ-----
उपास्य देव एक ही होना चाहिए फिर वह केशव या शिव कोई भी ।
एक ही मित्र होना चाहिए राजा या योगी । एक ही पत्नी होनी चाहिए फिर वह सुन्दरी हो अथवा पर्वत की दरी हो । वैसे ही निवास भी एक स्थान पर होना चाहिए एक तो नगर में या वन में ।
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गूढार्थ----
मनुष्य का मन चञ्चल होता है । उसकी निष्ठा हमेशा ही बदलती रहती है । इसलिए भर्तृहरि ने कहा है-- एक ही देव की उपासना करो आज एक कल दूसरा ऐसा नही । वैसे ही मैत्री भी एक से ही करो राजा अथवा योगी क्यों की दोनों के साथ एकसाथ मैत्री असंभव ।
पत्नी भी आश्रय देने वाली हो फिर वह सुन्दरी हो या पर्वत की दरी हो । निवास भी एक ही जगह करो या तो उत्तम संसारी बनो या फिर उत्तम तपस्वी ।
मनुष्य की श्रद्धा और निष्ठा एक ही होनी चाहिये । यह संदेश भर्तृहरि ने हमे दिया है ।
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卐卐ॐॐ卐卐
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / महाराष्ट्र
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।। सुभाषित रसास्वाद।। (३०)
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" सामान्यनीति"
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श्लोक------
" एको देवः केशवो वा शिवो वा एकं मित्रं भूपतिर्वा यतिर्वा ।
एका भार्या सुन्दरी वा दरी वा एको वासः पत्तने वा वने वा "।।
(नीतिशतकम् ( भर्तृहरि) )
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अर्थ-----
उपास्य देव एक ही होना चाहिए फिर वह केशव या शिव कोई भी ।
एक ही मित्र होना चाहिए राजा या योगी । एक ही पत्नी होनी चाहिए फिर वह सुन्दरी हो अथवा पर्वत की दरी हो । वैसे ही निवास भी एक स्थान पर होना चाहिए एक तो नगर में या वन में ।
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गूढार्थ----
मनुष्य का मन चञ्चल होता है । उसकी निष्ठा हमेशा ही बदलती रहती है । इसलिए भर्तृहरि ने कहा है-- एक ही देव की उपासना करो आज एक कल दूसरा ऐसा नही । वैसे ही मैत्री भी एक से ही करो राजा अथवा योगी क्यों की दोनों के साथ एकसाथ मैत्री असंभव ।
पत्नी भी आश्रय देने वाली हो फिर वह सुन्दरी हो या पर्वत की दरी हो । निवास भी एक ही जगह करो या तो उत्तम संसारी बनो या फिर उत्तम तपस्वी ।
मनुष्य की श्रद्धा और निष्ठा एक ही होनी चाहिये । यह संदेश भर्तृहरि ने हमे दिया है ।
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डाॅ. वर्षा प्रकाश टोणगांवकर
पुणे / महाराष्ट्र
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